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कविता

मौन में बातें हुई

रमेश चंद्र पंत


हाँ, दरख्तों ने
नए फिर वस्त्र हैं पहने।

गंधपूरित
हैं हवाएँ
चंदनी साँसें हुईं
मूक है
वाणी हृदय की
मौन में बातें हुईं,

डालियों पर फिर,
वही हैं पुष्प के गहने।

रंग की
जादूगरी हर ओर
है दिखने लगी
खुशबुएँ
अनुबंध अपने
फिर नए लिखने लगीं

जड़ हों या चेतन
सभी के आज क्या कहने।


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